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गौरेला पेंड्रा-मरवाही

गौरेला-पेंड्रा-मारवाही में जुआ का अड्डा: प्रशासन की आँखों में धूल झोंक रहे जुआड़ी

Anupam Pandey
Last updated: 2025/08/26 at 6:10 AM
Anupam Pandey 3 months ago
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गौरेला-पेंड्रा-मारवाही (GPM) जिला आजकल एक गंभीर सामाजिक समस्या से जूझ रहा है। जिले के कई हिस्सों, विशेषकर धनपुर, धोबहर और शिवनी के जंगलों में धड़ल्ले से जुए का आयोजन किया जा रहा है। आलम यह है कि यह अवैध कारोबार अब इतना बड़ा रूप ले चुका है कि आसपास के जिलों और पड़ोसी प्रदेशों से भी जुआरी यहां पहुँच रहे हैं। यहाँ न केवल जुआ खेला जा रहा है, बल्कि जुए की बड़ी-बड़ी गोटियाँ लगाई जा रही हैं, जिससे अवैध धन का मेला सा लगने लगा है। स्थिति यह हो गई है कि जुआरियों का जमावड़ा इन जंगलों को “गोपनीय ठिकाने” की तरह इस्तेमाल करने लगा है।

बाहरी राज्यों से पहुँच रहे जुआरी
स्थानीय सूत्रों की मानें तो जुआ खेलने के लिए केवल स्थानीय लोग ही शामिल नहीं होते बल्कि आसपास के जिलों और राज्यों—जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र तक से भी जुआरी आ रहे हैं। यह लोग रात के समय वाहनों से जंगलों में पहुँचते हैं और पुलिस-प्रशासन की निगाहों से दूर इस अवैध गतिविधि को अंजाम देते हैं। बड़े स्तर पर चलने वाले इस जुए के अड्डों पर लाखों रुपये की बाज़ियाँ लगाई जाती हैं।

जंगल बन गए जुए का अड्डा
धनपुरी, धोबहर और शिवनी के जंगलों का चयन इसलिए किया जाता है क्योंकि यह दुर्गम क्षेत्र हैं और पुलिस को भनक लगाना मुश्किल हो जाता है। घने जंगलों में बैठकर घंटों तक पत्तों पर गोटियाँ चलती रहती हैं। आवाजाही के लिए लोग दोपहिया वाहन और छोटे चारपहिया वाहनों का उपयोग करते हैं, जिनकी पार्किंग भी अलग-अलग जगहों पर कर दी जाती है ताकि अचानक किसी छापेमारी की स्थिति में भाग निकलना आसान हो।

रोज़गार और विकास की बजाय अपराध बढ़ रहा
गौरेला-पेंड्रा-मारवाही जिला वैसे भी पिछड़ेपन, बेरोज़गारी और अव्यवस्थित सड़क तंत्र जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। सड़कें जर्जर होकर परिवहन को बाधित करती हैं और ग्रामीणों की रोजमर्रा की कठिनाइयाँ बढ़ाती हैं। ऐसे हालात में लोग रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं, और दूसरी ओर बड़े स्तर पर अवैध जुआ कारोबार फल-फूल रहा है। इससे स्थानीय युवाओं पर भी बुरा असर पड़ रहा है। नशाखोरी, उधारी और पारिवारिक कलह जैसे दुष्प्रभाव इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में
स्थानीय नागरिक यह सवाल उठाने लगे हैं कि जब रात-दिन गांव-जंगलों में जुआरियों का जमावड़ा हो रहा है, तो प्रशासन और पुलिस को इसकी भनक क्यों नहीं लगती? क्या पुलिस व प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है, या फिर कहीं न कहीं मिलीभगत की बू आ रही है? लोगों का आरोप है कि यदि पुलिस चाह ले तो इन अड्डों को कुछ ही दिनों में धराशायी कर सकती है। लेकिन कार्रवाई के बजाय यह धंधा और ज्यादा परवान चढ़ता जा रहा है।

सामाजिक संतुलन पर पड़ रहा असर
ग्रामीणों का कहना है कि जुए के कारण घर-परिवार टूट रहे हैं। कई लोग अपनी ज़मीन-जायदाद तक दांव पर लगाने लगे हैं। यह स्थिति सामाजिक संतुलन को बिगाड़ रही है। जिन पैसों को लोग खेती-किसानी या बच्चों की पढ़ाई में खर्च कर सकते थे, वह सब रातों-रात जुए की भेंट चढ़ रहा है।

जनता की मांग: सख्त कार्रवाई हो
ग्रामीण और जागरूक नागरिक लगातार यह मांग कर रहे हैं कि शासन व प्रशासन इस पर शीघ्र कार्रवाई करे। धनपुरी, धोबहर और शिवनी जैसे इलाकों की पुलिस गश्त बढ़ाई जाए और जंगलों में नियमित छापामारी की कार्रवाई हो। साथ ही बाहर से आने वाले संदिग्ध वाहनों की भी जांच-पड़ताल हो।

निष्कर्ष
गौरेला-पेंड्रा-मारवाही जिला जहां प्राकृतिक संसाधनों और आदिवासी संस्कृति से समृद्ध है, वहीं इस प्रकार के अवैध कारोबार उसके चेहरे पर कालिख पोत रहे हैं। जुआ केवल अपराध नहीं, बल्कि कई अन्य सामाजिक समस्याओं की जड़ है। यह नशे, चोरी-डकैती और घरेलू हिंसा जैसी घटनाओं को भी जन्म देता है। ऐसे में प्रशासन को अब और अनदेखी नहीं करनी चाहिए। जल्द से जल्द बड़े स्तर पर कार्रवाई की ज़रूरत है, ताकि इस जिले में कानून व्यवस्था कायम हो सके और युवा गलत राह पर जाने से बच सकें।

Anupam Pandey

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