पंचायत सचिव संतराम यादव पर एक के बाद एक गंभीर आरोपों की परतें खुलती जा रही हैं। गांव के लोगों के बीच वे अब “भ्रष्टाचार के बादशाह” के नाम से चर्चित हो चुके हैं। आरोप है कि वह अपने पद का दुरुपयोग करते हुए पंचायत की योजनाओं और अनुबंधों से मनमाने तरीके से लाभ उठा रहे हैं। हाल ही में पशु पंजीयन ठेका प्रकरण ने इस भ्रष्टाचार गाथा की नई शुरुआत कर दी है।
जानकारी के अनुसार, पंचायत में पशु पंजीयन के लिए ठेका प्रक्रिया के दौरान संतराम यादव ने अपने नजदीकी व्यक्ति भरत कश्यप को ठेका दिलाने में सक्रिय भूमिका निभाई। बताया जाता है कि ठेका देने की इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का कोई अस्तित्व नहीं था। जितनी राशि निविदा में तय की गई थी, उसका बड़ा हिस्सा या तो गायब हो गया या फिर जमा ही नहीं किया गया। सूत्रों के अनुसार, ठेका मिलने के बाद ठेकेदार भरत कश्यप ने पंचायत खाते में कोई राशि जमा नहीं की, लेकिन इसके बावजूद उसकी लापरवाही पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। अगली बार जब नया वार्षिक ठेका निकाला गया, तो संतराम यादव ने पुराने ठेकेदार के पिता, यानी भरत कश्यप के पिता, को नया ठेका दे दिया। यह निर्णय पंचायत की नियमावली के पूर्णत: विपरीत था, क्योंकि पूर्व ठेके की राशि अभी भी बकाया थी। आश्चर्य की बात यह रही कि इस बार भी किस्त राशि पंचायत खाते में जमा नहीं कराई गई, और अब तक उस रकम का कोई रिकॉर्ड भी पंचायत दस्तावेजों में नहीं मिला है।
गांव के सूत्रों और स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह पूरा मामला केवल ठेका घोटाले तक सीमित नहीं है, बल्कि पंचायत निधियों के दुरुपयोग का हिस्सा है। कई निवासियों का आरोप है कि संतराम यादव अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए न केवल मनमाने ठेके देते हैं, बल्कि जांच पड़ताल या रिकॉर्ड सत्यापन में भी अधिकारियों को गुमराह कर देते हैं।
अब जब यह मामला धीरे-धीरे खुलने लगा है, तो संतराम यादव ने खुद को बचाने के लिए एक नया दांव खेला है। बताया जा रहा है कि वह नया पशु पंजीयन ठेका शुरू करने की तैयारी में हैं, ताकि पुराने बकायेदारों और भ्रष्टाचार की परतों को दबाया जा सके। इस नई प्रक्रिया में वे अपने कई नज़दीकी लोगों को शामिल करने की योजना बना रहे हैं, जिससे पंचायत में पुराने वित्तीय घोटालों का कोई निशान न बचे।
ग्रामीणों के बीच इस पूरे घटनाक्रम ने भारी असंतोष पैदा कर दिया है। कई जागरूक नागरिकों का कहना है कि पंचायत में लंबे समय से वित्तीय अनियमितताएँ चल रही हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन और वरिष्ठ अधिकारियों ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। यही वजह है कि सचिव लगातार नए-नए रास्ते खोजकर पैसे का खेल जारी रख रहे हैं।
गांव के वरिष्ठ नागरिकों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि सचिव संतराम यादव पर विसंगतियों की विस्तृत जांच कराई जाए और यदि आरोप सही पाए जाएँ, तो फौरन निलंबन के साथ कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। नागरिकों का कहना है कि पारदर्शिता और जवाबदेही के बिना ग्राम पंचायत जैसी संस्था में विकास की कोई सम्भावना नहीं बचती।
कार्रवाई और पारदर्शिता की दिशा में सुझावग्राम पंचायत के सुशासन की दिशा में जागरूक नागरिकों ने कुछ ठोस कदम सुझाए हैं
•पंचायत स्तर पर जाँच समिति गठित की जाए, जिसमें स्थानीय नागरिकों और सामाजिक प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए।
• सभी ठेकों और पंचायत व्यय का विवरण ऑनलाइन सार्वजनिक पोर्टल पर जारी किया जाए, ताकि हर ग्रामवासी को जानकारी मिल सके।
•जिला प्रशासन द्वारा एक स्वतंत्र ऑडिट टीम बनाई जाए, जो बीते तीन वर्षों के पंचायत खर्चों और ठेकों का सत्यापन करे।
•पंचायत सचिवों के कार्यों की त्रैमासिक समीक्षा बैठकें आयोजित हों, जिनमें पारदर्शिता और अनुशासन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि प्रशासन इन सुझावों पर शीघ्र अमल करता है, तो न केवल भ्रष्टाचार की जड़ें कमजोर होंगी, बल्कि पंचायत शासन में लोगों का भरोसा भी मजबूत होगा। कुढ़कई पंचायत का यह मामला अब सत्य और जवाबदेही की परीक्षा बन गया है—देखना है कि प्रशासन इस चुनौती का सामना कितनी ईमानदारी से करता है।

